कुछ यादों की डायरी : नवम्बर 2021
नवम्बर..!
आने से इसके आये बहार, जाने से उतरे सिर पर का भार, ऐसा नवंबर है तू, धरती है कि अम्बर है तू...!
देखो बात ये है कि हम तो हैं भुल्लू, रात में उल्लू और दिन में... क्या? दिन में भी वही रहेंगे, गिरगिट भी बेचारा रंग बदलता है, अपना जाति धर्म तो वही रहने देता है ना...! वैसे भी हम जैसे सर्वसाधारण अतिसाधारण, साधारण इनटू हंड्रेड जैसे मनुष्य के जीवन में सभी घटनाएं नार्मल ही होती हैं। मतलब न तो हमारे सपने खूब बड़े, न हमारी ख्वाहिशें खूब बड़ी, छोटी छोटी खुशियां.... बस यही बड़ी हैं।
"लाज़िमी है कि इनकार कर दूं गमो से, मुद्दतों के बाद मैंने हंसना जो सीखा था।"
लाइफ तो कीचड़ में फंसे हुए बन्द पड़े स्कूटर की तरह है, चलती ही नहीं, और अगर चल भी जाये तो निकलती ही नहीं, फिर क्यों न हम अपनी खुशियों को वहीं तलाशे जहां से हम बिलोंग करते हैं। मतलब मन के मिलन ने जीना सीखा ही दिया, अब खुलकर जीने की बारी थी।
घर से छोटे भाई बहन को स्कूल छोड़ने जाता था, मतलब गांव है न तो क्या कहें, एक तो रास्ता इतना खतरनाक होता है कि "मौत के मैराथन" वाले इधर दौड़ने से पल्ले चुल्लू भर पानी पीकर आएंगे... ताकि डूबने का दिल करे तो डूब लें..! छोटे छोटे बच्चे बड़े प्यार होते हैं, लेकिन शैतान कितने होते हैं ये बस वही जानता है जिसका उनसे पाला पड़ता है। धीरे धीरे थोड़ा बहुत बच्चों को पढ़ाने लगा, बाकी खुद का तो पढ़ना ही होता है।
लिखने में तो मैं कतई आलसी हूँ, मतलब आलस के मामले में मुझे 100 में से 1000 तो आराम से दिया जा सकता है..! कतई आलस के बाद अलग जॉनर में लिखने की कोशिश की तो लोगों का सपोर्ट नील बट्टा सन्नाटा ही मिलता है। खैर हमको का करना है, हमें तो लिखना था इसलिए लिखते ही रहे..!
नवंबर भी कुछ खास लेकर तो नहीं आया पर जो भी मिला मैंने तो फटाक से शेयर ही कर दिया है, वैसे भी हम छोटी छोटी खुशियां सहेजने वाले लोग हैं..और क्या.. खुश रहो, मस्त रहो.. यही अपना उसूल है।
राधे राधे
#डायरी